ख़बर

एक शाम जेंडर स्वतंत्रता के नाम

जामिया मिल्लिया इस्लामिया में कवि सम्मलेन का आयोजन


21  सितम्बर 2017, जा. मि. इ.
मोहम्मद आसिफ 

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के हिंदी विभाग और स्त्रीकाल पत्रिका के सामूहिक प्रयास से 19 सितम्बर, 2017 की शाम को एक कवि सम्मलेन का आयोजन संसथान के दायर-ए-मीर तौक़ी मीर ईमारत के मेरे अनीस हाल में किया गया। प्रख्यात कथाकार एवं कवि उदय प्रकाश  कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। जेंडर स्वतंत्रता को लेकर साइकिल यात्रा पर निकले हुए स्त्री विमर्शकर्ता राकेश  कुमार सिंह विशिष्ट रूप से उपस्थित रहे। कार्यक्रम  की अध्यक्षता हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. हेमलता महिश्वर ने की। कार्यक्रम की शुरुआत उदय प्रकाश की 'औरतें' शीर्षक कविता पर आधारित बनी लघु फिल्म के प्रदर्शन से हुई। इसके प्रोडूसर विकास डोगरा हैं  इसमें अदाकार इरफ़ान ने अपनी आवाज़ दी है। 

अध्यक्षीय भाषण देते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. हेमलता महिश्वर ने नयी पीढ़ी के कवियों और कवयित्रिओं का प्रोत्साहन किया। उन्होंने कहा, "एक नयी फ़ौज तैयार हो रही है। जो इस पथ पर आगे चलेगी।" प्रो. महिश्वर ने अपनी कविता 'विद्रोह' का पाठ कर के अपनी बात समाप्त की।

कवि सम्मलेन में प्रतिष्ठित कवियों के साथ-साथ जामिया के उभरते हुए कवियों ने भी अपनी कवितायेँ प्रस्तुत कीं। जामिया के अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्धित अध्यापकों एवं छात्रों ने कविता पाठ किया। कवि एवं कवियित्रिओं ने अपनी कविताओं  के माध्यम से स्त्री-उत्पीड़न के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला जिनमे कन्या भ्रूण हत्या, बलात्कार, दहेज़ हत्या, बालिका यौन शोषण आदि प्रमुख थे। एक कवियित्री ने 'द वुमन' शीर्षक कविता का अंग्रेजी पाठ किया।
(बायीं से दायीं  ओर) मुख्य अतिथि उदय प्रकाश, अध्यक्ष प्रो. हेमलता महिश्वर एवं राकेश कुमार सिंह  
मुख्य अतिथि ने सम्मलेन को सम्बोधित करते हुए कहा, "मुझे खड़ी बोली के कवि अमीर खुसरो की कविताओं से आगे निकलकर आज के जेंडर यात्रा के युग में बहुत फर्क नज़र  आता है। खुसरो के आँगन की चिड़िया और गैया आज के युग में विद्रोही बन गयी है।" उन्होंने अपनी बात एक कविता से समाप्त की, "आदमी मरने के बाद कुछ नहीं बोलता, कुछ  नहीं सोचता। कुछ नहीं सोचने,  कुछ नहीं बोलने पर आदमी मर जाता है।"
राकेश कुमार सिंह ने अपनी यात्रा के अनुभव साझा करते हुए कहा, "मैं अपनी यात्रा में इसी प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ रहा हूँ कि कौन है जिसने जेंडर की उत्पत्ति की और  इसे भेदभाव का कारण बना दिया। क्या कारण है कि इतनी सुरक्षा के बावजूद हमें 'बेटी बचाओ' का नारा देना पड़ता है। वो कौन हैं जिनसे हमें अपनी बेटियों को बचाना है।" 
कवि सम्मलेन में एक समय ऐसा भी आया जब कवियित्री नितिशा खालको की 'क्या सवाल और कलम भी कभी चुप होंगे' शीर्षक  कविता ने पूरे माहौल को भाव-विभोर कर दिया। सभी श्रोताओं ने उनका खड़े होकर ताली बजाते हुए अभिवादन किया। कार्यक्रम का संचालन स्त्रीकाल के अरुण कुमार ने किया। कार्यक्रम के समापन स्त्रीकाल के संजीव कुमार के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।

No comments:

Post a Comment