हिदायत

दीवार पर कुछ न लिखें, ये इबारत लिख दी
इस हिदायत ने उनकी उसे खराब कर दिया

कृपया शांति बनाए रखें, चीखकर बोले वो
कोशिश ने खामोशी को दरकिनार कर दिया

किसी से कहना नहीं, कुछ यूँ  फुसफुसाये
इसी बात ने हमें उनका हमराज़ कर दिया

वाह क्या बात है, क्या बात है, झूम उठे वो
इस वाहवाही ने फिर हमें  हैरान कर दिया

कैसे हैं आप? हमने यह सवाल कर लिया
खामोश रहे और  हमें खबरदार कर दिया

सच कह रहा हूँ, फिर से ज़ोर देकर बोले यूँ 
हमने भी हर फसाने पर ऐतबार कर लिया

और सुनाओ कुछ नया कहो, पूछते हैं वो
उनकी पूछताछ ने हमें शायराना कर दिया

उफ्फ! क्या करते हो? कुछ ढंग का किया करो
नसीहतों ने ही ज़माने की हमें नाकारा कर दिया

चलो चलें, कहीं बहुत दूर चलें, खयाल आया
ख्वाहिशों ने हमें थोड़ा मुसाफ़िराना कर दिया

स्थान

जिसकी  जो जगह उसको वहीं पे रहने दो 
आग को चूल्हों और चिराग़ों में ही रहने दो 

रोटियाँ सेंकने को तो तंदूर बहुत हैं 
घोंसलों को टहनियों ही पे रहने दो 

होती है ख़ाक हर शय जब जलती है 
ठंडा है आहन इसे ठंडा ही रहने दो 

ताड़ तिल का बनाना तो बड़ी बात नहीं 
किस्सा न बनाओ इसे मामूली ही रहने दो 

भूल चुका हूँ जिसे न दोहराओ वो बात 
मोहरा न बनाओ मुझे इंसां ही रहने दो 

ख़बर

एक शाम जेंडर स्वतंत्रता के नाम

जामिया मिल्लिया इस्लामिया में कवि सम्मलेन का आयोजन


21  सितम्बर 2017, जा. मि. इ.
मोहम्मद आसिफ 

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के हिंदी विभाग और स्त्रीकाल पत्रिका के सामूहिक प्रयास से 19 सितम्बर, 2017 की शाम को एक कवि सम्मलेन का आयोजन संसथान के दायर-ए-मीर तौक़ी मीर ईमारत के मेरे अनीस हाल में किया गया। प्रख्यात कथाकार एवं कवि उदय प्रकाश  कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। जेंडर स्वतंत्रता को लेकर साइकिल यात्रा पर निकले हुए स्त्री विमर्शकर्ता राकेश  कुमार सिंह विशिष्ट रूप से उपस्थित रहे। कार्यक्रम  की अध्यक्षता हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. हेमलता महिश्वर ने की। कार्यक्रम की शुरुआत उदय प्रकाश की 'औरतें' शीर्षक कविता पर आधारित बनी लघु फिल्म के प्रदर्शन से हुई। इसके प्रोडूसर विकास डोगरा हैं  इसमें अदाकार इरफ़ान ने अपनी आवाज़ दी है। 

अध्यक्षीय भाषण देते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. हेमलता महिश्वर ने नयी पीढ़ी के कवियों और कवयित्रिओं का प्रोत्साहन किया। उन्होंने कहा, "एक नयी फ़ौज तैयार हो रही है। जो इस पथ पर आगे चलेगी।" प्रो. महिश्वर ने अपनी कविता 'विद्रोह' का पाठ कर के अपनी बात समाप्त की।

कवि सम्मलेन में प्रतिष्ठित कवियों के साथ-साथ जामिया के उभरते हुए कवियों ने भी अपनी कवितायेँ प्रस्तुत कीं। जामिया के अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्धित अध्यापकों एवं छात्रों ने कविता पाठ किया। कवि एवं कवियित्रिओं ने अपनी कविताओं  के माध्यम से स्त्री-उत्पीड़न के सभी पहलुओं पर प्रकाश डाला जिनमे कन्या भ्रूण हत्या, बलात्कार, दहेज़ हत्या, बालिका यौन शोषण आदि प्रमुख थे। एक कवियित्री ने 'द वुमन' शीर्षक कविता का अंग्रेजी पाठ किया।
(बायीं से दायीं  ओर) मुख्य अतिथि उदय प्रकाश, अध्यक्ष प्रो. हेमलता महिश्वर एवं राकेश कुमार सिंह  
मुख्य अतिथि ने सम्मलेन को सम्बोधित करते हुए कहा, "मुझे खड़ी बोली के कवि अमीर खुसरो की कविताओं से आगे निकलकर आज के जेंडर यात्रा के युग में बहुत फर्क नज़र  आता है। खुसरो के आँगन की चिड़िया और गैया आज के युग में विद्रोही बन गयी है।" उन्होंने अपनी बात एक कविता से समाप्त की, "आदमी मरने के बाद कुछ नहीं बोलता, कुछ  नहीं सोचता। कुछ नहीं सोचने,  कुछ नहीं बोलने पर आदमी मर जाता है।"
राकेश कुमार सिंह ने अपनी यात्रा के अनुभव साझा करते हुए कहा, "मैं अपनी यात्रा में इसी प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ रहा हूँ कि कौन है जिसने जेंडर की उत्पत्ति की और  इसे भेदभाव का कारण बना दिया। क्या कारण है कि इतनी सुरक्षा के बावजूद हमें 'बेटी बचाओ' का नारा देना पड़ता है। वो कौन हैं जिनसे हमें अपनी बेटियों को बचाना है।" 
कवि सम्मलेन में एक समय ऐसा भी आया जब कवियित्री नितिशा खालको की 'क्या सवाल और कलम भी कभी चुप होंगे' शीर्षक  कविता ने पूरे माहौल को भाव-विभोर कर दिया। सभी श्रोताओं ने उनका खड़े होकर ताली बजाते हुए अभिवादन किया। कार्यक्रम का संचालन स्त्रीकाल के अरुण कुमार ने किया। कार्यक्रम के समापन स्त्रीकाल के संजीव कुमार के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।

स्वच्छता पखवाड़ा

जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने दिया स्वच्छता का सन्देश 

विभिन्न प्रतियोगिताओं का किया गया आयोजन 


यूँ तो

यूँ तो अँधेरा पहले भी हुआ करता था 
पर उम्मीद की किरण फिर भी दिखा करती थी 

यूँ तो झगड़े पहले भी हुआ करते थे 
पर आपसी प्यार नहीं मारा करता था 

यूँ तो भूख पहले भी हुआ करती थी 
पर इंसान जानवर नहीं बना करता था 

यूँ तो मौतें पहले भी हुआ करती थीं 
पर ज़मीर नहीं मारा करता था 

पतझड़ पहले भी आया करता था 
पर सावन नहीं मारा करता था 

बसंत पहले भी रूठ जाया  करता था
पर कोयल की कूक नहीं मरा करती थी 

इमारतें पहले भी गिरा करती थीं 
पर आशियानें नहीं टूटा करते थे 

ख़बर

जामिया के हिंदी विभाग ने मनाया हिंदी दिवस

हिंदी के प्रोत्साहन के लिए किया गया प्रतियोगिताओं का आयोजन

ख़बर

जामिया मिल्लिया इस्लामिया में सत्रारम्भ कार्यक्रम संपन्न

हिंदी विभाग समिति ने किया नवागुन्तकों का स्वागत 

धारा

बह जाना चाहते हो,
तो बह जाओ 
पर ख्याल रहे
धारा  के साथ बहने वाले 
तुम अकेले न होओगे
असंख्य होंगे 
जो दिन रात
मशीन के पुर्जे की तरह 
खटते-खपते
जीवन शेष होने से पहले 
खुद शेष हो जाएंगे
सचेत नहीं रहे तो 
संभव है तुम भी 
भीड़ का हिस्सा बन जाओ 
भेड़ों में एक और गिनती बन जाओ 
अपनी विलक्षणता और सक्षमता 
के बावजूद तुम कहीं खो जाओ 
और फिर आगे-पीछे-मध्य 
का भेद गौण हो जाये
संघर्ष थम जाए
फिर कैसे सृजन करोगे 
धारा के  विपरीत न बहोगे 
तो 
संघर्ष कैसे करोगे 
क्योंकि 
संघर्ष नहीं तो 
सृजन भी नहीं 

टीम

तुमने कहा था 
तुम्हें सफर पर जाना था 
और तुम कश्ती लेकर 
निकल पड़े
अकेले  
लेकिन तुम भूल गए थे 
कि तुम समंदर में उतरे थे
और कश्तियाँ
समुद्र के थपेड़े सहने को न बनी थीं 
सागर में तो जहाज़ ही विचरते हैं,
तुम  भूल गए थे
कि
लम्बी दूरी  के लिए जहाज़ होता है
और जहाज़
कोई अकेला नहीं चला सकता
उसके लिए तो चाहिए
"एक टीम"

शिकायत

शिकायत मुझे भी है
आप से,
उन से,
खुद से,
शिकायत मुझे भी है

ये मायूस चेहरे और आलम-ए-रुसवाई
ये खौफनाफ मंज़र और दहशत-ए-तन्हाई
ये बेदिली और अजनबी माहौल,
जज़्बात-ए-इंसा हुए बेमोल,
इस माहौल से शिकायत मुझे भी है

बेबसी का पतझड़ और आंसुओं का सावन,
ये लाचार-बेआस-बेबस निगाहें,
बेआब मछली-सी तड़प और दर्दनाक आहें
इस दर्द की नाइत्तेफ़ाक़ी से,
शिकायत मुझे भी है

हालात हमारे एक से पर चेहरे एक-दूजे के तकते
राह नहीं मालूम, सहारा एक-दूसरे का खोजते
कभी मैं निराश तो कभी वह आस छोड़ता
इस आशा निराशा के खेल से
शिकायत मुझे भी है

ये नौजवानों की भटकन, ये मासूमों की धड़कन
ये बर्बाद जवानी, ये बेसहारा बुढ़ापा
वो उम्मीद की किरण, ये झूठे वादों का जाल
इस जालसाज़ी, फरेब से,
धर्म के आक़ाओं से,
देश के रहनुमाओं से,
शिकायत मुझे भी है
आप से,
उन से,
खुद से