लुका-छिपी

आज फिर कहीं बाज़ार सजा होगा 
तमन्नाओं का अम्बार लगा होगा 

कहीं तो कोई बेचता होगा खून रगों का 
और कहीं खरीदारों का हुजूम लगा होगा 

कहीं हसीं इश्क़ की महफ़िल होगी 
कहीं कीचड़ का व्यौपार सजा होगा 

गुमनाम हैं जो उसकी याद में 
कहीं ईमान का मज़ार सजा होगा 

सच की तलाश में भटकते हैं लोग 
झूठ की चकाचौंध में कहीं छिप गया होगा 

किसी ने बेची होंगी मजबूरियां अपनी 
किसी की खुशियों का सौदा हुआ होगा 

3 comments:

  1. हम परवारिशे लौहो कलम करते रहेंगे
    जो दिल पर गुज़रती है रक़म करते रहेंगे

    ReplyDelete