बंद कमरा

बंद कमरा

मकान के एक बंद कमरे को,
न करने से लगातार साफ,
पड़ जाते हैं उसमें जाले,
छत के कोनों, नल के नीचे और टाँड पर,
जम जाती है अनचाही धूल
फर्श, बिस्तर और किताबों पर,
बस जाती है सड़ांध
कपड़ों, अखबारों और दिवारों में,
घुस जाती है सीलन
कुर्सी, मेज और अलमारी में,
लग जाती है दीमक,
खिड़की, दरवाजों और चौखट में,
करने लगते हैं राज,
सरिसर्प, कीट और कृंतक
छा जाती है मनहूसियत
गुम जाती है इंसानियत
यही हाल होता है,
जब
कुंद पड़ जाता है
एक हिस्सा जीते जागते मनुष्य का
मस्तिष्क का
-मोहम्मद आसिफ

गुनहगार बच्चे Guilty Kids

गुनाहगार बच्चे

होते हैं 
बच्चे गुनहगार होते हैं
वो गुनहगार होते हैं क्योंकि 
वो मासूम होते हैं
उनका गुनाह है कि 
वे व्यापार के नियम नहीं समझते
उनकी भोली-भाली नज़र में
नहीं होता कोई दुश्मन
उनकी शीरी जुबाँ से
नहीं होती किसी की बुराई
उनका गुनाह है कि 
उनके खिलौने किसी का घर नहीं जलाते
यह भी उन्हीं गुनाह है कि
उन्हें अपने परिवार का
नाम मिला
धर्म मिला
ज़ात मिली
उनका गुनाह है कि वे
अपने माँ-बाप की आँखों के तारे हैं
अपनी बस्ती का गुरूर और
अपने मुल्क का मुस्तकबिल हैं
बहुत लम्बी है उनके गुनाहों की फेहरिस्त
एक गुनाह यह भी है कि 
वो किसी के खुदा के प्यारे हैं
उनका गुनाह है कि वो
मजहब
जात 
जुबाँ और 
मुल्क की सरहद को नहीं समझते
इन्हीं गुनाहों की सज़ा हम उन्हें देते हैं
निशाना बनाते हैं उनके स्कूलों 
और खेल के मैदानों को
उनकेे खिलौनों और किताबों को
क्योंकि हम समझदार हैं
हम जो कुछ करते हैं 
उसका अर्थ होता है
उससे अर्थ पैदा होता है
गलत हैं वो लोग जो बच्चों के मरने का गम करते
आँसू बहाते हैं, चीखते-चिल्लाते हैं
वो बेगुनाह होते तो क्यों
वो किसी की तलवार की प्यास बुझाते
किसी की तोप के निशाने पर आते 
होते हैं बच्चे गुनहगार
इन गुनहगारों को सज़ा देना
हमारा फर्ज है, कत्तर्व्य है, 
हमारा धर्म है और
हम ‘धर्म-परायण’ हैं

मैं और तुम

मैं आईना
तुम पत्थर
जितने टुकड़े मेरे 
उतने अक्स तुम्हारे

मैं सागर तट की रेत
तुम बालक अबोध समान
जितना रौंदों मुझको 
उतने चिह्न तुम्हारे

मैं घट का जल
तुम पनिहारी डगर की
जितना बाँटो मुझको
उतने बिम्ब तुम्हारे

मैं ढाप मृदंग की
तुम वादक की थाप 
जितने वार हों मुझपर
उतने सुर तुम्हारे

मैं ईंधन की लकड़ी
तुम अग्नि विकराल
जितनी खपत हो मेरी
उतने रूप तुम्हारे

इस्राईली प्रधानमंत्री नेतन्याहू की भारत यात्रा का विरोध

भारत की छह कम्युनिस्ट पार्टियों का प्रदर्शन

15 जनवरी 2018, सोमवार
नई दिल्ली

इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की भारत यात्रा का देश की छः कम्युनिस्ट पार्टियों ने जमकर विरोध किया। एस यू सी आई (कम्युनिस्ट), भाकपा, भाकपा (माले), माकपा, कम्युनिस्ट गदर पार्टी ऑफ इंडिया , आर. एस. पी. सहित ऑल इण्डिया पैलेस्टाइन सोलिडेरिटी आर्गेनाईजेशन ने इंडिया गेट के पास दिल्ली के शाहजहां रोड पर "नेतन्याहू वापस जाओ" के नारे लगाकर प्रदर्शनकारियों ने अपना विरोध व्यक्त किया। 

वक्ताओं ने इज़राइली प्रधानमंत्री के भारत आगमन के विरोध का कारण स्पष्ट करते हुए बताया कि किस तरह से इज़राइल लगातार फिलिस्तीनी ज़मीनों पर कब्ज़ा जमा रहा है और फिलिस्तीनी जनता पर  अत्याचार कर रहा है। माकपा के पोलित ब्यूरो सदस्य प्रकाश करात ने कहा कि भारत के साथ होने वाली सामरिक संधि से कमाए हुए पैसों का इस्तेमाल इज़राइल फिलिस्तीनी धरती का अतिक्रमण करने के लिए करेगा।

"हमने अभी तक करोड़ों रुपयों के हथियार इज़राइल से खरीदे हैं। इसी पैसे को इस्तेमाल करके इज़राइल सरकार फिलिस्तीनी जमीनों पर अपना कब्जा जमाए हुई है। इसलिए हम मांग करते हैं कि भारत सरकार इज़राइल सरकार के साथ किसी भी प्रकार का सैन्य और सुरक्षा का रिश्ता कायम न रखे। हमें उनसे हथियार नहीं खरीदने चाहिए।", प्रकाश करात ने कहा।
गांधी जी के हवाले से उन्होंने आगे कहा, "गांधी जी
शाहजहां रोड पर विरोध प्रदर्शन करते कम्युनिस्ट पार्टियों के नेता एवं कार्यकर्ता
ने कहा था कि फिलिस्तीनी जनता के  अधिकारों को छीन कर, उनको ग़ुलाम बनाकर इज़राइल कायम किया गया है।"

भाकपा के राष्ट्रीय सचिव डी. राजा  ने अपने भाषण में इज़राइल की नीतियों का विरोध करते हुए कहा कि वे इज़राइल की सम्राज्यवादी नीतियों का विरोध करते हैं। उन्होंने कहा, "इज़राइल संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति संधि की पेशकश को स्वीकार करने से लगातार  इनकार कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने दो-राष्ट्र नामक समाधान पेश किया है। जहाँ फिलिस्तीन और इज़राल दोनों का सह अस्तित्व होगा। इज़राल भी रहेगा और फिलिस्तीन भी रहेगा। परंतु इज़राइल इसे स्वीकार नही करता है।  हम इज़राइल की नीतियों का विरोध कर रहे हैं। इज़राइल लगातार फिलिस्तीनी धरती पर अनाधिकृत रूप से कब्ज़ा करता जा रहा है। इज़राइल लगातार फिलिस्तीनी जनता के खिलाफ युद्ध छेड़ता जा रहा है। फिलिस्तीनी जनता आज़ादी और एक आज़ाद मुल्क की स्थापना के लिए संघर्ष कर रही है। भारत एकमात्र पहला गैर-अरबी मुल्क है जिसने फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र देश की मान्यता दी है।"

इज़राइल-फिलिस्तीनी संकट पर अपनी बात रखते हुए एस.यू.सी.आई.(कम्युनिस्ट) के केन्द्रीय कमेटी सदस्य सत्यवान ने फिलिस्तीनी जनता का समर्थन किया और अमेरिका के येरूसलम को इज़राइल की राजधानी घोषित करने के फैसले का विरोध किया। उन्होंने कहा, "हम फिलिस्तीनी जनता के संघर्ष को जायज़ मानते हैं। हाल ही में अमेरिका के द्वारा येरूसलम को इज़राइल की राजधानी घोषित करना अन्यायपूर्ण है तथा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के खिलाफ भी है।" उन्होंने आगे कहा, "भारत की परंपरा साम्राज्यवाद के खिलाफ रही है। भारत की जनता साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ी है। भारत ने अपनी आजादी खुद लड़कर हासिल की है। भारत दुनिया भर में शांति का पक्षधर रहा है। लेकिन मोदी जी भारत के प्रधानमंत्री रहते हुए भारत की जनता का प्रतिनिधित्व नही कर रहे हैं बल्कि उंगलियों पर गिने जाने लायक कुछ बड़े पूंजीपतियों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।"

मुसीबत

वो आती है
हम घबरा जाते हैं
क्योंकि
नाउम्मीदी के पर्दों से
झाँकती है वो
और
हम सोचते हैं
कसमसाते हैं
पछताते है कि
तैयारी क्यों नही की
बैकअप प्लान क्यों नही बनाया
काश ऐसा करते,
काश ऐसा होता,
काश ऐसा हो जाये
इस बार यह टल जाए
फिर ऐसी गलती नहीं होगी
पूरी तरह तैयार रहेंगे
पहले से सोच कर चलेंगे
कुछ तो हल निकले
और वो टल गई
घबराहट चली गयी
हम फिर मस्त हो गए
हर्षोल्लास और उत्सव
सोचा कि अब सब
ठीक है
अब कुछ नहीं होगा
निर्धारित डगों पर
चलती रहेगी ज़िन्दगी
योजनाएं क्या होती है
भूल गए
बुरा क्या होता है
याद नहीं रहा
उम्मीदों भरा जीवन जीते हैं
फिर एक दिन अचानक से
दबे पाँव, बिन आवाज़ के
घात लगाए
हमारी लापरवाही
का फायदा उठाकर
दरवाज़े पर दस्तक करती है
हमनें खुशी से चहकते हुए पूछा
कौन
आवाज़ आयी
वही
जिसे तुम भूल बैठे थे
तुम्हारी अपनी
मुसीबत

भूतकाल से पत्राचार

प्रिय भूतकाल,

आशा करता हूँ कि तुम्हारी उम्र चाँद सितारों सी हो और तुम्हें उन्हीं के जैसा चमकने का सौभाग्य प्राप्त हो। यह बात और है कि इस कामना के पीछे मेरा निहित स्वार्थ मौजूद है। तुमने मुझे जीवन की अनेक स्मृतियाँ दी हैं। यह भी सत्य है कि तुम्हारी यात्रा जितनी ही लंबी होगी तुम मेरे लिये उतनी ही मात्रा में स्मृतियों का संयोजन करोगे। कहने की बात नही है पर जो कुछ भी तुम मुझे देते गए, हँसते-रोते, गाते-मुस्कुराते मैंने स्वीकार किया। तुमने मुझे बचपन दिया। बेफिक्री दी, दोस्त-यार दिए, सरल हृदय दिया और दी बड़े होने की चाहत। तुमने मुझे अलग-अलग रूपों में समय-समय पर छला है। मैंने जो भी माँगा वो तुमने समय निकल जाने के बाद दिया। बचपन में समय दिया पर समझ नही दी। जवानी में समझ दी पर समय नही दिया। जो दिया वो बचपन की यादें थीं और फिर से उस बचपन मे लौट जाने की नामुमकिन सी ख्वाहिश। तुम एक छलिया हो जिसने मुझे जीवन के हर पड़ाव की कीमत उसके अगले पड़ाव में समझाई। तुमने मुझे समझाने वाले तो दिए पर समझने वालों का अकाल रखा। शुभचिंतक और अहितकारियों की भीड़ में मेरे साथ धक्का-मुक्की हुई। कहीं किसी ने संभालने की कोशिश की तो मेरा अहंकार मेरे सामने आ गया और कहीं किसी ने लूटा तो मेरा भोलापन सामने आ गया। एक पश्चयताप ही था जो दोनों अवस्थाओं में एक ही तरह से प्रकट हुआ। जो कभी अकेला नही आया। अपने साथ लाया दुःख, अकेलापन, निराशा, दुराशा और अविश्वास। कहीं किसी को मैंने अपना समझा तो वो पराया निकला।

मुझे सुख की भी अनुभूति हुई परंतु यह मात्र उस मरीचिका के समान थी जैसी मरुस्थल में किसी प्यासे को होती है। जिसे मैं सुख समझता था वह मेरी इन्द्रियों की क्षणिक तृप्ति मात्र थी। मेरे अन्तर्मन में सदा एक बेकली रही। प्रेम एक ऐसा प्रसंग रहा जिसकी परिभाषा व्यक्ति,वस्तु, स्थान और काल के आधार पर लगातार बदलती रही। मेरे भूतकाल मैं तुमसे शिकायत नहीं कर रहा हूँ बल्कि यह बताने का प्रयास कर रहा हूँ कि तुम्हारी शिक्षाओं ने मुझे अनुभव दिया।  मैं तुमसे कहना चाहता हूँ कि मुझे आज भी मेरे और तुम्हारे बीच के इस रिश्ते का नामकरण करने का अवसर प्राप्त नही हुआ है। मैंने कभी इस बारे में अगर सोचा भी तो मैं कभी समझ नही पाया कि मैं इस रिश्ते को आखिर क्या नाम दूँ क्योंकि तुम और मैं जितना आगे बढ़ते गए हमारा फासला उतना ही बढ़ता चला गया। 

तुमने मुझे जवानी और जोश दिया। पहाड़ों को हिला देने का साहस और हवाओं का रुख बदलने की शक्ति भी दी। पर साथ में दिया अहंकार। अहंकार कि मुझसे बलशाली कोई नहीं। भ्रम दिया कि मैं जीवन भर सदैव उतना ही बलशाली रहूँगा जितना अपने यौवनकाल में था, कि जीवन अकेले भी जिया जा सकता है। तुमने मुझे बुद्धि दी और अनिष्टकारी संतुष्टि दी कि मुझसे बड़ा कोई विद्वान नहीं, कि जो कुछ मैं सोचता हूँ वही सही है। मैं गलत हो ही नही सकता। पर अफसोस मैं ही गलत था। काश इस सब के साथ तुमने मुझे समझाया होता कि सहयोग और धैर्य भी जीवन की नाव की पतवार होते हैं तो तूफानों से जूझना आसान होता। निर्माण करना आसान होता और जीवन के अंतिम पड़ाव पर मैं अकेला नही होता। मैं भूल गया था कि व्यक्ति भले ही कितना भी बलशाली हो वह एक दिन कमज़ोर हो ही जाता है। उसका अहंकार टूट जाता है। रह-रह कर हर वाक्य के पहले जो शब्द आता है वह 'काश' होता है। 'काश मैंने औरों की भी बात सुनी होती', 'काश, मैंने अपने गुस्से पर काबू पाया होता', 'मैंने जाना होता कि दूसरों के पास भी बुद्धि है' और 'काश, मुझे कभी काश न कहना पड़ता'।

मैं यह भी जनता हूँ कि मेरे जैसा मैं अकेला नहीं हूँ फिर भी मैं अकेला ही हूँ। मेरे जैसा मैं पहला नहीं हूँ लेकिन आखिरी भी नहीं हूँ।

तुम्हारा भुक्तभोगी