मैं आईना
तुम पत्थर
जितने टुकड़े मेरे
उतने अक्स तुम्हारे
तुम पत्थर
जितने टुकड़े मेरे
उतने अक्स तुम्हारे
मैं सागर तट की रेत
तुम बालक अबोध समान
जितना रौंदों मुझको
उतने चिह्न तुम्हारे
तुम बालक अबोध समान
जितना रौंदों मुझको
उतने चिह्न तुम्हारे
मैं घट का जल
तुम पनिहारी डगर की
जितना बाँटो मुझको
उतने बिम्ब तुम्हारे
तुम पनिहारी डगर की
जितना बाँटो मुझको
उतने बिम्ब तुम्हारे
मैं ढाप मृदंग की
तुम वादक की थाप
जितने वार हों मुझपर
उतने सुर तुम्हारे
तुम वादक की थाप
जितने वार हों मुझपर
उतने सुर तुम्हारे
मैं ईंधन की लकड़ी
तुम अग्नि विकराल
जितनी खपत हो मेरी
उतने रूप तुम्हारे
तुम अग्नि विकराल
जितनी खपत हो मेरी
उतने रूप तुम्हारे
Wow, Very nicely written.Keep up the outstanding work.
ReplyDeleteWOW. Aesa lagta h kisi ruthe hue ko manane k liye likhi h.
ReplyDeleteReally Nice to see the use of words n its practically true too. It explains d beauty of a relationship and positivity behind d things tht seems negative smtyms.
Nicely written,
ReplyDeleteGo to kindathoughtable.blogspot.in